Bageshwar By Election का पूरा विश्लेषण: आखिर क्यों कम अंतर से हुई बीजेपी की जीत? क्या नाराज खड़िया लॉबी ने दिखाई ताकत? क्या रही कांग्रेस की हार की वजह? पढ़िए पूरा विश्लेषण…हमारे संपादकीय में…

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उत्तराखंड की बागेश्वर विधानसभा सीट के चुनाव नतीजों ने कई बातें साफ कर दी हैं। ये सीट पर पूर्व मंत्री चंदन राम दास के निधन से खाली हो गई थी। लिहाजा बीजेपी ने चंदन राम दास की पत्नी पार्वती दास को चुनावी मैदान में उतारा। और पार्वती 2404 वोटों से जीतने में सफल रही।

पहली बात
बागेश्वर उप उपचुनाव में पार्वती की इस जीत ने कई बातें साफ कर दी हैं। पहली बात बीजेपी का चुनाव मैनेजमेंट बेहतरीन रहा। बीजेपी ने बूथों का इतना माइक्रो मैनेजमेंट किया कि कांग्रेस सीधी लड़ाई में भी उस चक्रव्यूह को नहीं तोड़ पाई। और इस सबके दमपर जीत उसकी झोली में ही रही।

दूसरी बात
बागेश्वर की जनता ने साबित किया कि केंद्र और राज्य की सत्ता में होने के बावजूद बीजेपी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। बल्कि उसमें बढ़ोतरी हुई है। यह बात बीजेपी को मिले वोट प्रतिशत से साबित होती है। 2022 में स्वर्गीय चंदन राम दास खुद चुनाव लड़े। लेकिन उन्हें तकरीबन 43 फीसदी वोट मिले थे।

वहीं  उनके निधन के बाद हुए इस उपचुनाव में प्रत्याशी बनाई गई उनकी पत्नी पार्वती दास को 49 फीसदी से ज्यादा वोट मिले। हालांकि पार्वती दास का जीत का मार्जिन पति चंदन राम दास की तुलना में बेहद कम रहा लेकिन मत प्रतिशत बढ़ गया।

तीसरी बात
बागेश्वर की जनता ने तय कर दी कि पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम पुष्कर सिंह धामी लोकप्रियता कहीं से भी कम नहीं हुई है। पार्वती की जीत ने इन दोनों के कामकाज पर मुहर लगा दी है। इस पूरे चुनाव के लिए बीजेपी संगठन की तरफ से चुनाव प्रभारी रहे प्रदेश महामंत्री राजेंद्र सिंह बिष्ट भी मानते हैं कि ये जीत पार्टी नेतृत्व और उनकी नीतियों की जीत है।

बीजेपी को करना पड़ेगा इस बात का विश्लेषण!

हालांकि बीजेपी को इस बात का भी  विश्लेषण करना पड़ेगा कि तमाम सहानुभूति के बावजूद क्यों पार्वती इतने कम वोटों के अंतर से जीती। सवाल है कि क्या पार्वती के साथ सहानुभूति थी या नहीं। या इसके पीछे कोई और वजह भी जिम्मेदार है। हमें इलाके में घूमने पर पता लगा था कि दरअसल चंदन राम दास की कार्यशैली से तो लोग काफी प्रभावित थे।

लेकिन उनके बेटों को लेकर एक नाराजगी थी। जिसकी चर्चा लोगों के बीच तेज रही। साथ ही बगल की विधानसभा कपकोट से विधायक सुरेष गढ़िया की कार्यशैली भी सवालों के घेरे में है। चर्चा रही कि खड़िया लॉबी गढ़िया से नाराज है। जिसके चलते ये लॉबी  पीछे से कांग्रेस प्रत्याशी बसंत कुमार के साथ आकर खड़ी हो गई। जिसने सामाजिक और आर्थिक रूप से बसंत का खूब साथ दिया। जिससे वोटर प्रभावित हुआ और मामल करीबी रहा।

कांग्रेस से लिए छिपा संदेश
हालांकि बागेश्वर की इस लड़ाई में उसके प्रत्याशी बसंत कुमार की हार हुई है। लेकिन इसके बावजूद इस लड़ाई में पूरी कांग्रेस के लिए एक सकारात्मक संदेश छिपा है। संदेश साफ है अगर कांग्रेस के नेता-कार्यकर्ता मेहनत करें, मजबूत प्रत्याशी मैदान में उतारें, गुटबाजी से निकलकर काम करें और संगठन की मजबूत व्यूह रचन करे, तो बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सकती है।

यह संदेश 2014 से लगातार हार झेलती आ रही कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए 2024 लोकसभा चुनाव से पहले मनोबल बढ़ाने वाला है।

इसलिए हार गए बसंत कुमार

बागेश्वर सीट पर साल 2007 से लेकर आज तक पांच बार विधानसभा चुनाव हो चुका है। लेकिन इस सीट का मुकाबला कभी बीएसपी, कभी यूकेडी और कभी आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों ने त्रिकोणीय बना दिया। लेकिन ये पहला मौका रहा जब बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर रही। दरअसल कांग्रेस और बसंत की हार के पीछे उनका इतिहास काफी हदतक जिम्मेदार रहा।

पिछले चुनावों में बसंत ने जिस तरीके के शब्दों का प्रयोग अगड़ी जातियों के लिए किया उससे नाराजगी साफ थी। हालांकि खड़िया लॉबी का बसंत को अच्छा साथ मिला। कांग्रेस में आने में हुई देरी भी बसंत की हार की वजह बनी।

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